जब बबलू ने खोला समझदारी की दुकान – और पूरा गाँव मूर्ख साबित हो गया!

बबलू… एक ऐसा लड़का जिसे गाँव वाले “नालायक”, “बेकार”, “निकम्मा” कहते थे। ढक्कनपुर गाँव में उसका नाम ही मज़ाक बन चुका था। पढ़ाई में ज़ीरो, नौकरी नहीं, मोबाइल से चिपका रहता और चुपचाप अकेले खटिया पर बैठा रहता। माँ कहती—कुछ काम कर बेटा। बाप कहता—जैसा नाम वैसा काम। पड़ोसी कहते—इससे अच्छा तो उनका कुत्ता है जो कम से कम भौंकता तो है। लेकिन बबलू को किसी की बातों से फर्क नहीं पड़ता था। वो बस सोचता रहता था—“क्या मैं वाकई बेकार हूँ, या ये दुनिया ही थोड़ी उल्टी है?”और एक दिन बबलू ने वो कर दिया जो गाँव के सबसे पढ़े-लिखे भी ना कर सके। उसने गाँव के बस स्टैंड के पास एक पुराना लकड़ी का ठेला खड़ा किया और ऊपर एक अजीब सा बोर्ड टांग दिया—"यहाँ समझदारी बेची जाती है – हर मूर्ख का स्वागत है!"लोगों को लगा कि अब बबलू पूरी तरह से पगला गया है। पप्पू हलवाई बोला—"समझदारी भी कोई बेचने की चीज़ है?"गट्टू बोला—"जिसे खुद अक्ल नहीं है वो समझदारी बेचेगा?"गाँव वाले ठहाके लगाकर हँसे और ठेले के सामने फोटो खींचने लगे। लेकिन बबलू ने एक स्टूल निकाली, बैठा और चुपचाप एक पर्ची निकाली जिस पर लिखा था—"आज की सलाह: जो सबसे ज़्यादा बोले, वो सबसे कम समझे!"पहले दिन कोई नहीं आया। दूसरे दिन हरिया चाचा curiosity में आए। बोले—"बेटा ये क्या नौटंकी है?"बबलू बोला—"चाचा जी, 5 रुपये दीजिए और एक ऐसी सीख पाइए जो ज़िंदगी बदल दे।"हरिया चाचा ने मज़ाक में 5 रुपये दिए। बबलू ने एक छोटी सी पर्ची दी—“जो गुस्से में फैसला करता है, वो ज़िंदगी भर पछताता है।”हरिया चाचा चुप हो गए और धीरे-धीरे चले गए। अगले दिन उन्होंने घर पर बेटे को डांटना बंद कर दिया। तीसरे दिन गाँव में हलचल मच गई। “अरे, हरिया तो बदल गया!”अब तो भीड़ लगने लगी बबलू के ठेले पर। हर कोई 5 या 10 रुपये दे रहा था और छोटी-छोटी बातों में बड़ा ज्ञान पा रहा था। किसी को मिला—"राय तभी दो जब कोई मांगे", किसी को—"शांत आदमी कमज़ोर नहीं होता, समझदार होता है।"बबलू के ठेले पर अब लोग झगड़े सुलझाने लगे थे। रामबाई और चमेली जो पहले पड़ोसियों के बर्तन तोड़ती थीं, अब वहाँ साथ में बैठ कर सीख पढ़तीं। इंस्टाग्राम पर किसी ने फोटो डाल दी—“Desi Gyaan Baba – समझदारी की दुकान वाला लड़का”। एक हफ्ते में बबलू का इंस्टा 50K फॉलोअर्स तक पहुँच गया। गाँव के छोटे लड़के उसे ‘गुरु जी’ कहने लगे। कुछ लोग जल भी गए। गट्टू बोला—“सुनो जी, ये लड़का तो गाँव का मज़ाक बना रहा है। इसका ठेला बंद कराओ।”बात सरपंच तक पहुँची। रामदयाल सरपंच खुद पहुँचे ठेले पर। बोले—“बबलू ये सब बंद करो। ये पंचायत का अपमान है।”बबलू मुस्कुराया, बोला—“सरपंच जी, एक बार 10 रुपये दीजिए, फिर बोलिएगा।”गाँव वाले चौंक गए—“सरपंच पैसे देगा?”लेकिन रामदयाल जी ने जेब से 10 रुपये निकाले। बबलू ने पर्ची दी—“नेता वही होता है जो सबसे ज़्यादा सुने और सबसे कम बोले।”सरपंच कुछ ना बोले। खामोश हो गए। और उस शाम पहली बार पंचायत में चाय के साथ बहस नहीं, बबलू की सीखों की चर्चा हुई। अब तो ये 'समझदारी की दुकान' गाँव की लाइफलाइन बन गई थी। गाँव का स्कूल भी बबलू को बुलाने लगा बच्चों को ‘practical life’ सिखाने। अब बबलू मोबाइल पर Reels डालता, जिसमें वो कहता—“समझदारी बिकती नहीं, पर बाँटी जा सकती है।”“डिग्री हो या ना हो, सोच होनी चाहिए।”“जिन्हें सबकी चिंता है, वो अक्सर खुद से दूर हो जाते हैं।”गाँव के लड़कों ने PUBG छोड़कर बबलू की सीखें फॉलो करनी शुरू कीं। लड़कियाँ अब उसे propose तक करने लगीं—“इतना समझदार लड़का मिलना मुश्किल है बबलू जी!”बबलू मुस्कुराता, कहता—“मैं अभी खुद को समझ रहा हूँ, किसी और को क्या समझाऊँ।”एक दिन एक बूढ़ी औरत आई, बोली—“बेटा, तू इतना जानता है, फिर स्कूल क्यों छोड़ा?”बबलू बोला—“अम्मा, मैंने स्कूल नहीं छोड़ा, हालात ने छुड़ाया। लेकिन मैं आज भी पढ़ता हूँ… ज़िंदगी से।”अब बबलू को लोग इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, फेसबुक पर ‘गाँव का जीवन कोच’ कहते हैं।सरपंच ने पंचायत भवन में बोर्ड लगवाया—🪧 “समझदारी की दुकान – जहाँ हर मूर्ख को समझ में आता है कि वो कितना अनपढ़ है।”और आज भी ढक्कनपुर का सबसे चर्चित ठेला बबलू का है—जहाँ चाय नहीं मिलती, गुटखा नहीं, पर ज़िंदगी की सबसे बड़ी सीखें मिलती हैं।और ये सब शुरू हुआ था सिर्फ एक ठेले और एक सोच से।कोई degree नहीं, कोई coaching नहीं, कोई पैसे नहीं… सिर्फ खुद पर यकीन, थोड़ी हिम्मत और बहुत सारा patience। --- मोरल (छुपा हुआ ज्ञान): जिंदगी में समझदारी सबसे बड़ी डिग्री होती है। जो खुद को मूर्ख मान कर सीखता है, वही सबसे बड़ा ज्ञानी होता है। हँसते हुए सिखाना सबसे बड़ा गुण होता है। और जो लोग तुम्हें बेकार समझते हैं, उन्हें जवाब सिर्फ एक काम से दो – कोई बात नहीं, जवाब दो ठेले से!

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