जब मैं मम्मी से दूर हुई – वो चुप्पी जो चीख से भी तेज़ थी


 "मम्मी, मैं जा रही हूं… ससुराल…"

ये बोलना जितना आसान था, उतना ही मुश्किल था मम्मी की आंखों में वो नमी देखना, जो उन्होंने सबसे छुपा रखी थी।

शादी वाला दिन था… सब लोग हंस रहे थे, DJ बज रहा था, खाना शानदार था…

लेकिन एक कोना था, जहाँ मेरी मम्मी चुपचाप खड़ी थीं — कभी मेरी फ्रॉक ठीक करती थीं, कभी मेरे दुपट्टे के पिन।

“बिटिया, ये गोल रोटी बनाना सीख लेना… वहाँ कोई ‘Swiggy’ नहीं है।”

मैं हँसी – “अरे मम्मी, वहाँ microwave है न!”

मम्मी मुस्कुरा दीं… लेकिन उनकी आंखों में वो दर्द साफ था, जो हर माँ छुपाती है।

 – पहली रात ससुराल में


रात को बिस्तर पर लेटी, तो सासू माँ बोलीं –

“रात में किचन की लाइट बंद रखना।”

मैंने धीरे से कहा – “मम्मी तो रात में हल्की लाइट छोड़ती थीं…”

फिर खुद ही मुस्कुराई — अब मम्मी की आदतें सिर्फ यादें हैं।


फोन उठाया, और मम्मी का नाम देखा…

पर कॉल नहीं किया। सोचा, रो दूंगी।


– वो पहली लड़ाई


एक दिन मेरी सास से छोटी सी बहस हो गई। मैं गुस्से में कमरे में आई और फोन उठाया —

“मम्मी! यहाँ कोई मुझे समझता ही नहीं!”


मम्मी बोलीं –

"तेरे पापा को मैं 30 साल से समझा रही हूं… तू एक हफ्ते में थक गई?" 😂

मैं हँसी भी… और रोई भी।

मम्मी कभी मुझे समझाती नहीं थीं… वो मेरी शिकायतों में चुपचाप मेरा सिर सहला देती थीं।

– जब मम्मी घर आईं…


एक महीने बाद मम्मी आईं।

मैं उन्हें देखकर बच्चों जैसी दौड़ पड़ी।

"मम्मी! देखो मैंने गोल रोटियां बनाना सीख लिया!"

मम्मी बोलीं – "वाह! अब तू officially बहू बन गई है!"

फिर धीमे से जोड़ा –

"लेकिन मेरे लिए, तू अब भी वो 8 साल की बच्ची है, जो आधी रोटी खाकर भाग जाती थी…"

मेरी आंखें भर आईं।

 – जब खुद मम्मी बनने का पता चला…

जब मुझे पता चला कि मैं माँ बनने वाली हूं,

मैंने सबसे पहले कॉल मम्मी को किया।


"मम्मी… अब मुझे डर लग रहा है।"

मम्मी बोलीं –

"अब तुझे समझ आएगा, जब बच्चा रोता है तो माँ क्यों नहीं सो पाती…

और जब हँसता है, तो माँ का दिल क्यों भर आता है…"


मैंने कहा – "मम्मी, मैं माफ़ी चाहती हूं।"

वो बोलीं – "माँ से माफी नहीं मांगी जाती बेटा… माँ बस समझ जाती है।"


अब जब मैं खुद माँ बनने वाली हूं,

तो आईने में खुद को देखती हूं… और लगता है —

“मैं धीरे-धीरे मम्मी बन रही हूं…”


और सबसे बड़ा सच यही है —

"हम सब बेटियाँ, आख़िर में अपनी मम्मियों जैसी ही बन जाती हैं… प्यार भी वैसा, डांट भी वैसी, और वो चुप्पी भी… जो चीख से भी तेज़ होती है।”



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